अनियमित खाना-पानी से और विहार से ही वात, पित्त और कफ 'मंदग्नि रोग' उतपन्न होते है। जब ये तीनों दोष समान रहते हैं, तब 'समाग्नि' रहती है। उस समय हमारा खाना-पीना ठीक रूप से पचता और उनकी रस-रक्त आदि धातुएं तथा मल-मूत्र आदि बने हैं। लेकिन जब उम्र अधिक हो जाती है तब हमारी जठराग्नि विषम हो जाती है। विषम अग्नि कभी तो खाना पचा लेती है और कभी नही पचा पाती। धन्वंतरि के अनुसार कभी वह पेट में शूल, अतिसार, उदावतॅ प्रवाहिका, पेट का भारीपन और गुड़गुडाहट प्रभृति विकार करती है और कभी खाना पाचन कर देती है। इसी तरह जब पित्त अधिक हो जाता है तब हमारी जठराग्नि तीक्ष्ण हो जाती है। वह हमारे खाये-पीये अन्नपानादि को शीघ्र ही पचा लेती है और हमें फिर भूख लगती है। प्रकृति से अधिक का लेने पर भी तृष्टि नहीं होती, खाने की अभिलाषा बनी रहती है। यहां तक कि जब पित्त बहुत ही तीक्ष्ण हो जाता है, वायु और कफ क्षीण हो जाता है। उस समय हमे भस्मक रोग हो जाता है। जो भी खाया जाता है, पेट में जाते ही भस्म हो जाता है। भोजन पचते ही तालु और कण्ठ सूखने लगते हैं और दाह तथा संताप होता है। इसी भांति, जबकि कफ अधिक हो जाता है तब मंदग्नि होती है। अग्नि के मंदिर होने से, थोड़ा सा खाना भी बड़ी देरी से पचता है। खाना पेट मे पथ्थर की तरह रखा जाता है, पचने से पहले पेट में भारीपन, सिर में वेदना, श्वास, खाँसी, राल बहना और थकान प्रभृति उपद्रव होते हैं। सारांश यह कि वात, पित्त और कफ की समानता और कमीबेशी से चार तरह की अग्नि होती है। इसमें समाग्नि श्रेष्ठ है और मंदग्नि सबसे खराब है। अग्नि के मंद होने से हमारे शरीर रूपी मशीन में गड़बड़ी हो जाती है। जब तक ये आग ठीक रूप से जलती रहती है इसके जोर से सब शारीरिक यंत्र अपना काम यथार्थ रुप से करते रहते हैं किन्तु ज्यों ही यह आग मंद हो जाती है, उन सबका काम ठीक नहीं होता जिससे खाया-पीया भोजन, पेट या ग्रहणी में योगदान जमा रहकर सड़ जाता है, क्योंकि बिना अग्नि की सहायता के ग्रहणी भोजन को पचा नहीं सकती। जब अग्नि मंद हो जाती है तब ग्रहणी कमजोर हो जाती है। ग्रहणी एक खाना पचानेवाला अंग है और वह अग्नि के जोर से भोजन पचाता है। जब खाना पच ही नहीं पाता तब रस-रक्त आदि धातुएं कैसे बनेगी? और जब शरीर को धारण करनेवाली धातुएं ही नहीं बनेगी तब शरीर कैसे नियमित रह सकता है? अग्नि के मंदिर होने से बवासीर, अतिसार और संग्रहणी प्रभृति अनेक दु:खदायी व्याधियों खडी हो जाती है जिनके कारण, नाना प्रकार के घोर कष्ट उठाने पडते हैं।
शुध्द्व एवं प्राकृतिक जड़ी-बूटियों से पेट अमृत चूर्ण बनाया गया है। यह शुगर फ्री, फैट फ्री, कोलेस्ट्रोल फ्री, कैलोरीज फ्री तथा पूणॅ शाकाहारी है।
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सेवन विधि
- 5 ग्राम चूर्ण दोपहर को भोजन के बाद।
- 5 ग्राम चूर्ण रात्रि को भोजन के बाद।
पेट अमृत चूणॅ मंगवाने के लिए संपर्क करे
बी. सी. हासाराम एण्ड सन्स
अपर रोड, हरिद्वार 249401
उत्तराखंड, भारत
दूरभाष : 01334 227860, 225760
फैक्स : 01334 227712
मो.: 09837027478, 09927866778, 09837794184
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