कठिन सॆ कठिन, जटिल सॆ जटिल, पुराने सॆ पुराने, भयंकर सॆ भयंकर पॆट कॆ समस्त रोगों की दिव्य एवं अलौकिक आयुवेॅदिक औषधि।
पौराणिक ग्रंन्थो के अनुसार मानव जीवन ८४ करोड योनियां भोगने के बाद प्राप्त होता है। मनुष्य को अपना जीवन सुख, समृध्द्वि तथा वैभव के साथ बिताना चाहिए। परंन्तु आजकल जिस प्रकार मिलावटी खानपान, जंकफूड, फास्टफूड, प्रदूषण युक्त खानपान मानव शरीर को सैंकडों प्रकार के रोगो से ग्रसित करता है तथा फिर शुरू होता है बीमारीयो का मायाजाल।
पेट के समस्त रोग मन्दाग्नि और जठराग्नि के कुपित हो जाने से पैदा होते है जिस प्रकार कपडा तैयार करने को मिल में अनेको छोटी मशीने और यंत्र होते है और ये सब एक दुसरे के बल से चलते है, एक चक्का दुसरे चक्के की ताकत से घूमता है, दुसरा तीसरे की ताकत से और तीसरा चौथे की ताकत से सेंकडो चक्के धूमते है, उन सब को घूमानेवाला बडा चक्का होता है और उस बडे चक्के को घूमानेवाला ब्यालर होता है। ब्यालर को धूमाती है अग्नि और पानी से पैदा हुई भाप, कहने का मतलब है की उस मिल में काम सब करते है, पर किसके बल पर ? अग्नि व भाप के बल पर। बस, ठीक यही हाल हमारे इस शरीर रूपी मशीन का है। इस मशीन में हृदय, लीवर, यकृत, तिल्ली, आमाशय, पक्वाशय, प्रभृति अनेक यंत्र और पुरजे है। सब यंत्र का काम अलग अलग होता है। कोई भोजन को पकाकर रस बनाता है तो कोई रस को रक्त बनाता है। यह सब कायॅ हमारे पेट का है।
इस पेट मे गडबडी होने से सांसगॅिक रोगो के सिवाय और सभी रोग पैदा हो सकते है। जब तक पेट शुध्द्व रहता है, रोग पास नहीं आते जहां पेट खराब हुआ कि रोगो ने हमले किये। पेट या ग्रहणी का अच्छा या बुरा रहना अग्नि पर निभॅर रहता है। अगर अग्नि ठीक है तो पेट भी ठीक है। अगर अग्नि दूषित है तो पेट भी दूषित है। जब अग्नि मंद हो जाती है तब ग्रहणी, अग्नि या यथेष्ट बल न पाने से भोजन को पचा नहीं सकती। भोजन के न पचने से मलावरोध होता है, यानि जितना चाहिए उससे अधिक समय तक मल आँतो में रूका रहता है। आंत में रूके रहने से वहां वह पडा पडा सडता है। मल के सडने से अग्नि मंद हो जाती है और शरीर रोगी हो जाता है। हमारे शरीर रूपी मशीन को चलानेवाली आग की ताकत कम हो जाती है तथा हम जो कुछ खाते पीेते है वह नहीं पचता, अजीणॅ या बदहजमी हो जाती है और इस अजीणॅ या बदहजमी से दस्त साफ नहीं होता, भूख नहीं लगती, खट्टी डकारे आती है, पेट भारी रहता है और फुल जाता है, खाने में अरूचि हो जाती है, पेट में तरह तरह के शूल चलते है, जी मचलता है, उल्टी होने की इच्छा होती है, बुखार चढ जाता है, पतले दस्त होने लगते है या एकदम होता ही नहीं इत्यादि भयंकर विकार उत्पन्न हो जाते है। अजीणॅ की वजह से अनेक रोग पैदा होते है। जिसे हैजा या कालरा कहते है, वह अजीणॅ के सिवा और कुछ नहीं। जब अजीणॅ भयंकर रूप धारण कर लेता है, तब उसे हैजा कहते है। इसी से यकृत लीवर भी प्रदूषित हो जाता है और फिर उससे पीलिया जैसे भयंकर रोग हो जाते है।
पुदीना अमृत
शुध्द्व एवं प्राकृतिक जडी बूटियाँ से पोदीना अमृत का निमाॅण किया गया है। यह १०० फीसदी शुगर फ्री, फैट फ्री, काॅलेस्ट्रोल फ्री, कैलोरीज फ्री और संपूणॅ शाकाहारी है। पोदीना अमृत के नियमित सेवन से
- एसिडिटी
- पेट का भयंकर ददॅ
- उल्टियां
- हैजा
- गैस
- वायु
- कब्ज
- अफारा
- बदहजमी
- खट्टी डकार
- हृदय का भारीपन
- छाटी में जलन
जैसी समस्त बीमारियों को जडमूल से नष्ट करने वाला है तथा इसका नियमित सेवन से पेट मुलायम हो जाता है।
उपयोग करने का तरीका
- दो चाय वाले चम्मच दोपहर भोजन के बाद
- दो चाय वाले चम्मच रात्रि भोजन के बाद
पुदीना अमृत मंगवाने के लिए संपर्क करे
बी. सी. हासाराम एण्ड सन्स
अपर रोड, हरिद्वार 249401
उत्तराखंड, भारत
दूरभाष : 01334 227860, 225760
फैक्स : 01334 227712
मो.: 09837027478, 09927866778, 09837794184
ईमेल : sales@haridwarayurved.com
वेब साईट : www.haridwarayurved.com
Related Posts
Comments
Post a Comment