एक रोज इशॉद हुआ कि एक तालिबे-इल्म (विधाथीॅ) बहुत देर करके मकतब (पाठशाला) पहुंचा। मौलवी साहब ने देर की वजह दरयाफ्त की तो लडके ने जवाब दिया कि "बारिश की वजह से रास्ते में ऐसी कीचड हो रही है कि मैं एक कदम आगे को रखता तो दो कदम पीछे को हटते थे। बमुश्किल तमाम मकतब तक पहुंचा हूँ।"
मौलवी साहब ने कहा, "जब दो कदम पीछे हटते थे, तो तुम मकतब किस तरह पहुंचे ?"
लडके ने कहा कि, "हजरत ! मैने घर की तरफ़ मुँह किया था और मकतब की तरफ़ पीठ कर ली थी। तब कदम-ब-कदम मकतब आया ह़ूं !"
इसी तरह इंसान अगर दुनिया से डरकर भागे नहीं बल्कि उस की तरफ मुँह करके खडा़ हो जावे, तब भी हादिसात (घटनाएं) और वाक़आत (परिस्थितियों) का तजजिया (विश्लेषण) उसको क़दम-ब-क़दम खुदा तक पहुंचा ही देगा।
मौलवी साहब ने कहा, "जब दो कदम पीछे हटते थे, तो तुम मकतब किस तरह पहुंचे ?"
लडके ने कहा कि, "हजरत ! मैने घर की तरफ़ मुँह किया था और मकतब की तरफ़ पीठ कर ली थी। तब कदम-ब-कदम मकतब आया ह़ूं !"
इसी तरह इंसान अगर दुनिया से डरकर भागे नहीं बल्कि उस की तरफ मुँह करके खडा़ हो जावे, तब भी हादिसात (घटनाएं) और वाक़आत (परिस्थितियों) का तजजिया (विश्लेषण) उसको क़दम-ब-क़दम खुदा तक पहुंचा ही देगा।
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