यह बात उस समय की है जब पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध खत्म हुआ उसके बाद श्रीकृष्ण सीधे द्वारका चले गये। पर जब वहाँ से विदाय ले रहे थे तो वो पांडवों से मिलने के बाद श्रीकृष्ण पांडवों की माता कुंती से मिलने गये।
श्रीकृष्ण जा रहे थे। इसलिए कुंती उदास थी। श्रीकृष्ण ने उनसे पूछा, जाने से पहले मैं आपको कुछ देना चाहता हूँ। बोलीये क्या देता जाऊं।
कुंती ने कहा, मुझे कुछ नही चाहिए। पर श्रीकृष्ण ने आग्रह किया कि तुम कुछ मागो ही।
कुंती ने कहा, तुम को कुछ देना ही है तो दुःख देते जाएंगे।
कुंती माता की बात सुन रहे थे पांडवों तो उन्हे आघात पहुंचा। उनको हुआ की हम अभी तो दु:खों से बहार निकले है वहाँ हमारी माता फिर से श्रीकृष्ण के पास दु:ख की माग कर रहे है !
भीम से बोले बिना रहा नहीं गया। उसने कहा कि, मा हम पर इतने सारे दुःखो के पहाड गिर चूके है वो कम थे कि आप और भी दुःख माग रहे हो ? किन्तु श्रीकृष्ण के चेहरे पर कुछ भी असर दिख नहीं रहा था। वो समझ गये थे की कुंती क्या कहना चाहती हैं। उन्होंने कुंती से सवाल किया, सब मेरे पास सुख मागते है पर आप दुःख माग रहे हो ?
कुंती ने कहा कि सब को सुख और वैभव चाहिए पर मुझे आपका सानिध्य चाहिए। जब तक हम दु:खी थे तब तक आप हमारे साथ थे। अब दु:ख की विदाय के साथ आप भी विदाय ले रहे हो। इसलिए में भी आप से दुःख माग रही हूं। दुख होगा तो आप हमारे साथ रहोगे। आप हंमेशा हमारे साथ ही रहो इसलिए में आप से दुःख की माग कर रही हूँ !
कुंती ने कहा कि सब को सुख और वैभव चाहिए पर मुझे आपका सानिध्य चाहिए। जब तक हम दु:खी थे तब तक आप हमारे साथ थे। अब दु:ख की विदाय के साथ आप भी विदाय ले रहे हो। इसलिए में भी आप से दुःख माग रही हूं। दुख होगा तो आप हमारे साथ रहोगे। आप हंमेशा हमारे साथ ही रहो इसलिए में आप से दुःख की माग कर रही हूँ !
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